इंटरेस्ट रेट तथा बांड की कीमत के बीच रिलेशन | Relation between Interest Rate and Bond

इंटरेस्ट रेट तथा बांड की कीमत के बीच रिलेशन | Relation between Interest Rate and Bond

Bonds क्या है ? (बंधन क्या है)

सरकारी निकाय (government bodies) और कॉरपोरेट संगठन (corporate organization) फंड (fund) जुटाने के लिए Bond जारी करते हैं। जब आप बांड में निवेश करते हैं, तो आप बांड के जारीकर्ता को ऋण प्रदान करते हैं। वे एक परिपक्वता तिथि (maturity Date) के साथ आते हैं । परिपक्वता (maturity) तक हर साल, बांड जारीकर्ता coupon भुगतान के रूप में आपको ब्याज देता है। coupon का भुगतान साल में दो बार अवधि के दौरान किया जाता है। परिपक्वता पर, जारीकर्ता बांड के अंकित मूल्य को चुकाता है। यदि आप बांड परिपक्व होने तक निवेश करते रहते हैं, तो आप ब्याज भुगतान के साथ मूलधन वापस प्राप्त करते हैं। सरल शब्द में जानते है

Bonds एक प्रकार से फिक्स्ड इनकम (fixed income) Debt Securities होती है जो विभिन्न प्रकार की Business Entities द्वारा निवेशकों से एक निश्चित समय तक कैपिटल range करने के काम आती है। Bond-Issuer Investor से यह वादा करता है कि वह Bond कि life के दौरान एक निश्चित इंटरेस्ट का भुगतान करेगा तथा साथ ही साथ इसकी Maturity पर Principal Amount या Face Value का भी भुगतान करेगा। Bonds मुख्यतः सरकार या फिर कॉर्पोरेट संस्थाओं या नगर पालिका या फिर अन्य Sovereign संस्थाओं द्वारा भी जारी किए जा सकते है।


बांड रिटर्न्स (Bond Returns) क्या है?

Bonds में एक इन्वेस्टर को मिलने वाले रिटर्न को Bond Yield कहते है। Bond में मिलने वाले return को calculate करने के लिए हम Bond Coupon payment (Bond पर मिलने वाली Interest Rate) को Bond की face Value से divide कर देते है। इसको Coupon Rate के नाम से भी जाना जाता है।

Coupon rate = Total Annual Coupon Payment / Par Value of Bond * 100%

Bond Yield और Bond Price के बीच relationship

Bond Yield तथा Bond Price के बीच Inverse Relation होता है अर्थात Bond की कीमत कम होने से Yield में वृद्धि होती है तथा इसका oppposite भी सही है।

आइये एक सरल उदाहरण देखते है – माना कि आप एक Rs 1000, 10% Bond को 5 साल की Maturity के साथ होल्ड करते है। इसका मतलब यह हुआ कि आप 5 साल तक प्रति वर्ष 100 रूपये (1000 का 10% ) का रिटर्न पाएंगे तथा Maturity पर 1000 रुपये आपको मिल जाएंगे। अगर Interest Rate 10% से ज्यादा जाती है तो इसका मतलब Bond की कीमत में गिरावट आएगी। इसलिए आप उस Bond को बेचने का फैसला करते है। माना कि इसी प्रकार के निवेश पर आपको 13% सालाना रिटर्न मिल रहा है तो ऐसी स्थिति में आपके द्वारा होल्ड किया गया बांड अन्य निवेशकों को भी आकर्षित नहीं कर पाता क्योंकि यह एक साल में केवल 100 रुपये का Interest देगा जबकि इसी प्रकार से इन्वेस्टमेंट से आपको 130 रुपये का Interest भी मिल रहा है।

RBI Monetary Policy क्या है?

RBI की Monetary Policy यह सुनिश्चित करती है कि देश में होने वाले पैसे की सप्लाई को RBI किस प्रकार से control करती है। यह Interest rate को भी नियंत्रित करती है जिससे Price Stability बनी रहे तथा ज्यादा Economic growth हो सकें।

RBI Monetary Policy हकीकत में Bond की कीमत को किस प्रकार से प्रभावित करती है

जैसा कि हमने जाना कि RBI की Interest Rate तथा Bond की कीमतों के बीच एक Inverse relationship होती है। इसका मतलब ये हुआ कि जब Interest Rates में बढ़ोतरी होती है तो Bond price में कमी होती है।

आइये एक सरल उदाहरण से इसको समझते है –

माना कि आप एक 10% bond को hold करते हो जिसकी Maturity 5 साल की है। अगर RBI Interest Rates को 2% से कम कर देती है तो आपको एक Bondholder के तौर पर 8% रिटर्न तो मिल ही जाएगा लेकिन एक नया Bondholder इससे 2% कम रिटर्न प्राप्त करेगा। इसी को मेंटेन करने के लिए Bond की कीमत ज्यादा हो जाती है तथा Yield to Maturity (YTM) market level पर maintain रहती है।

बॉन्ड्स (bonds) की demand तथा supply

सरकारी बॉन्ड्स के mainly 2 Buyers होते है – Banks तथा foreign portfolio investors (FPIs) ये दोनों Buyers ही अपने निर्णय लेने से पहले Interest Rates तथा Yields का जरूर Analysis करते है। आइये और जानते है –

Banks –
Banks मुख्य: उस कंडीशन को पसंद करते है जब Interest Rates में गिरावट हो क्योंकि इसकी वजह से Capital Appreciation का फायदा उनको मिल जाता है। इसकी वजह से बैंक्स ट्रेज़री प्रॉफिट भी बुक कर लेते है। जब रेट्स में गिरावट हो तो सरकार कम Yield पर भी Debt Raise कर सकती है।

Foreign Portfolio Investors (FPIs) –

FPI का बॉन्ड इन दो बातों पर depend करते है –

Indian Benchmark Yield :

अमेरिका जैसे Matured मार्किट के बजाय FPI भारतीय Yield की और ज्यादा आकर्षित होते है। US Benchmark Yield की तुलना में भारतीय बॉन्ड्स प्रीमियम पर ट्रेड करते है। इसकी वजह से ही FPI भारतीय बॉन्ड्स की और आकर्षित होते है।

Currency Outlook :

Monetary Policy के अंतर्गत करेंसी पर पड़ने वाले प्रभाव को भी FPIs अच्छे से विश्लेषित करते है। US Benchmark की तुलना में भारतीय बॉन्ड्स का प्रीमियम पर ट्रेड होना तभी लाभदायक रहेगा जब INR तथा USD के बीच एक स्टेबिलिटी हो।

COVID-19 का बॉन्ड मार्केट (Bond market) पर प्रभाव –

बहुत सारे Initiatives तथा प्रयासों के बाद भी भारतीय बॉन्ड मार्केट (Bond market) की उतनी उन्नति नहीं हुई है। भारतीय GDP के 20% से भी कम हिस्से में इसका योगदान रहता है वहीं US में यह नंबर 120% है। लेकिन भारतीय बॉन्ड मार्किट लगातार प्रोग्रेस कर रहा है तथा भविष्य में इसमें काफी विकास होने की संभावना है।

कोरोना नामक महामारी के कारण अनेक निवेशकों का आकर्षण इक्विटी की बजाय बॉन्ड्स की तरफ बढ़ा है तथा इसके परिणामस्वरूप बांड्स की प्राइस में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी गयी। भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ को और ज्यादा गति देने के लिए RBI ने रेट्स में कटौती कर दी जिसकी वजह से बॉन्ड्स की कीमतों में वृद्धी हुई तथा Yields में गिरावट देखने को मिली।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *